संकट मोचन हनुमान मंदिर शिमला

26 February, 2023

यह मंदिर शिमला से लगभग 6 किलोमीटर की दूरी पर है। मंदिर कालका शिमला मार्ग पर ही स्थित है। रेलवे द्वारा कालका से शिमला जाते हुए तारादेवी स्टेशन पर उतर कर मंदिर में प्रवेश कर सकते हैं। तारा देवी गांव के निवासी भाग्यवान है जहां बाबा नीम करौली जी महाराज प्रकट हुए और उस पावन स्थान पर भव्य हनुमान मंदिर का निर्माण किया गया। वह सभी श्रद्धालु गण धन्य है जो कई पवित्र समय पर पूजा अर्चना और प्रभु का गुणगान कर पुण्य अर्जित करते हैं। वे लोग जो इस पवित्र स्थान की सेवा करते हैं जो दानी पुरुष महिला अपनी नेक कमाई में से कुछ अंश देवस्थान की प्रगति के लिए दान देते हैं वह धन्य हैं।
बाबा नीम करोली जी का जन्म एक कुलीन स्भ्रांत ब्राह्मण परिवार में हुआ। बाल्यावस्था में ही घर से निकलकर गुजरात में मोरबी से 40 किलोमीटर दूर ग्राम बावानिया व अन्य स्थानों पर योग साधना में लीन हो गए थे। विमाता के व्यवहार से बाबा जी घर पर आकर जन कल्याण में समर्पित हो गए। बावानिया में एक तालाब के किनारे बाबा जी ने हनुमान की मूर्ति खुले स्थान पर प्रतिष्ठित कर दी जो कालांतर में मंदिर बन गया। इस प्रकार हनुमान मंदिर का निर्माण कार्य शुरू हुआ और देश के विभिन्न भागों में हनुमान मंदिर बनाते चले गए।

पांचवी दशक में बाबाजी शिमला आए तो वह कच्ची घाटी तारा देवी के पास गांव बढ़ई तहसील कसुम्पटी जिला महासू में एक कुटिया में 10-12 दिन ठहरे। 1962 में तत्कालीन उप राज्यपाल स्वर्गीय राजा बजरंग बहादुर सिंह भद्री के यहां पधारे। श्री सिंह उत्तर प्रदेश की भद्री रियासत के निवासी थे। महात्मा जी की प्रेरणा से उप राज्यपाल तथा महावीर सिंह जी जो जिलाधीश महासू तथा एस.एस.बी. में उच्च अधिकारी थे, द्वारा मंदिर निर्माण के लिए स्थल का चयन किया गया। पहले स्थान शिमला के पास चक्र संदल की ऊंची पहाड़ियों पर देखा गया परंतु बाद में बाबा जी ने इसी बढ़ई गांव को चुना। उस समय पहले भक्त रघुनाथ सहाय थे जिन्होंने भूमि लेकर तथा जिलाधीश महावीर सिंह की सहायता से यहां हनुमान मंदिर बनाया। 21 जून 1966 तदनुसार आषाढ़ शुक्ल तृतीय 2033 मंगलवार को मूर्ति स्थापना विधिवत संपन्न किया गया। 1 जून 1976 में श्री यूडी शर्मा निवासी रूप प्रयाग को प्रथम पुजारी ₹300 प्रति माह वेतन पर तैनात किया गया।

मंदिर में हनुमान जी के साथ श्री राम, जानकी, लक्ष्मण तथा शंकर जी की मूर्तियां भी स्थापित की गई। समय-समय पर भागवत सप्ताह तथा भंडार होने लगा ब्रिगेडियर कपिल मोहन ने रामनवमी के दिन विशेष सत्संग करना शुरू कर दिया। हर रविवार को भंडारा शुरू कर दिया गया इस आयोजन में शिमला शहर की जनता कर्मचारी तथा दानियों ने बढ़ चढ़कर भाग लेना शुरू कर दिया और भंडारे का आयोजन लोगों में आकर्षण बन गया। इन उत्सव व भंडारों में स्थानीय लोगों के साथ-साथ बाहरी प्रदेशों से पर्यटक ज्यादा संख्या में आने लगे जिससे यह स्थान ना केवल शिमला में अपितु बाहरी प्रदेशों में प्रसिद्ध हो गया। परम पूज्य बाबा जी की प्रेरणा से आधुनिक मंदिर निर्माण का शिलान्यास मुख्यमंत्री स्वर्गीय श्री वीरभद्र सिंह द्वारा 10 अप्रैल 1995 को किया गया। राम नवमी के पावन अवसर पर 25 मार्च 1999 को इस मंदिर का उद्घाटन श्रद्धा व उत्साह के साथ संपन्न हुआ।

मंदिर में प्रातः 5:00 बजे सफाई की जाती है उसके पश्चात सभी मूर्तियां जिसमें हनुमान श्री राम-सीता, शिव शंकर शामिल है। स्थान के पश्चात अक्षत पुष्प धूप दीप जलाकर पूजा-अर्चना तथा आरती की जाती है। पुजारी कर्मचारी तथा स्थानीय लोग प्रातः कालीन पूजा-अर्चना में भाग लेकर फल नारियल प्रसाद आदि अर्पित करते हैं उसके बाद अपनी दिनचर्या शुरू करते हैं।
दोपहर 1:00 बजे देवताओं को भोग लगाया जाता है इस समय देव मूर्तियों को पर्दा कर भोग लगाया जाता है। संध्या पूजा की जाती है सभी भक्त गण तथा पुजारी गण व अन्य भक्ति प्रेमी आरती व भजन करते हैं तथा भगवान की आराधना करते हैं तत्पश्चात प्रसाद वितरण कर भजन सत्र संपूर्ण होता है। रात्रि 10:00 बजे तक मंदिर भक्तजनों के लिए खुला रहता है और भजन-कीर्तनओं से वातावरण भक्ति भाव से सराबोर हो जाता है। हर रविवार अमावस्या वह पूर्णमासी को मंदिर में भंडारा किया जाता है जिसमें शिमला शहर के लोग सहर्ष धन देकर इस भंडारे का खर्चा वहन कर पुण्य कमाते हैं। मंदिर की देखरेख के लिए सरकार ने ट्रस्ट का गठन किया है। मुख्य द्वार के साथ एक सूचना पट लगाया गया है जिस पर अमुक तिथि, पूर्णमासी अमावस्या तथा अन्य तिथियों व उस दिन होने वाले आयोजनों का या विशेष प्रवचन सप्ताह आदि का उल्लेख है ताकि भक्तगण इन अवसरों का लाभ उठा सकें।


मंदिर   धर्म एवं संस्कृति

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