29 September, 2020 | Views - 2128 |
कड़वा है, लेकिन सत्य है। इस पीढ़ी के लोग बिलकुल अलग ही हैं।
रात को जल्दी सोने वाले, सुबह जल्दी जागने वाले, भोर में घूमने निकलने वाले। आंगन और पौधों को पानी देने वाले, देवपूजा के लिए फूल तोड़ने वाले, पूजा अर्चना करने वाले, प्रतिदिन मंदिर जाने वाले। रास्ते में मिलने वालों से बात करने वाले, उनका सुख दु:ख पूछने वाले, दोनो हाथ जोड़ कर प्रणाम करने वाले, पूजा किये बिना अन्नग्रहण न करने वाले।
उनका अजीब सा संसार
तीज त्यौहार, मेहमान शिष्टाचार, अन्न, सब्जी, भाजी की चिंता कि शरीर को क्या सही रहेगा यह ध्यान रखने वाले। तीर्थयात्रा, रीति रिवाज करने वाले। पुराने फोन पे ही मोहित, फोन नंबर की डायरियां मेंटेन करने वाले, धार्मिक ग्रंथों को दिन भर में दो-तीन बार पढ़ लेने वाले। हमेशा एकादशी का व्रत रखने वाले, अमावस्या और पूरनमासी को दान करने वाले लोग, भगवान पर प्रचंड विश्वास रखने वाले। समाज का डर, पुरानी चप्पल, फटी बनियान में भी कोई समस्या नहीं, वही चश्मे वाले। गर्मियों में अचार पापड़ बनाने वाले, घर का कुटा हुआ मसाला इस्तेमाल करने वाले और हमेशा देशी टमाटर, बैंगन, मेथी, साग भाजी ढूंढने वाले।
क्या आपके घर में भी ऐसा कोई है ?
यदि हाँ, तो उनसे पुरानी बातें करके, उनके अनुभवों और संस्कारों को ले लीजिए। बहुत कुछ महत्वपूर्ण सीखने को अभी बाकी है। ये सभी लोग धीरे धीरे, हमारा साथ छोड़ के जा रहे हैं। उनका ध्यान रखें। अन्यथा एक महत्वपूर्ण सीख, उनके साथ ही चली जायेगी।
संतोषी जीवन, सादगीपूर्ण जीवन, प्रेरणा देने वाला जीवन, मिलावट और बनावट से दूर जीवन, धर्म सम्मत मार्ग पर चलने वाला जीवन और सबकी फिक्र करने वाला आत्मीय प्रेम पूर्ण जीवन।
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