17 June, 2021 | Views - 4689 |
हिमाचल का एक ऐसा मंदिर जहाँ हर 12 साल बाद मंदिर में स्तिथ शिवलिंग पर आसमानी बिजली गिरती है और उस आसमानी बिजली से शिवलिंग चकना चूर हो जाता है | हैरान करने वाली बात यह है कि कुछ ही दिनों में टुटा हुआ शिव लिंग ऐसे जुड़ जाता है मानो कुछ हुआ ही न हो |
आज हम बात कर रहे है हिमाचल में कुल्लू जिले के पार्वती और व्यास नदी के संगम पर मथाण पर्वत की सबसे ऊँची चोटी पर स्थित बिजली महादेव मंदिर की | इस मंदिर का नाम भी इसी कारण रखा गया है क्योंकि यहाँ हर 12 साल बाद आसमानी बिजली गिरती है | हाल ही में इस मंदिर में 11 जून 2021 को आसमानी बिजली गिरी है जिसका मतलब यह है की अगली आसमानी बिलजी 2033 में गिरेगी | आसमानी बिजली गिरने से मंदिर में स्थित शिवलिंग चकना चूर हो जाता है जोकि यहाँ के आस पास के गाँव के लोगो के लिए 1 उत्सव का दिन होता है | यह दिन उत्सव क्यों होता है वो भी आपको बताऊंगा लेकिन उससे पहले आपको बतादू कि इस उत्सव के मौके पर सभी लोग उस शिव लिंग पर मक्खन का लेप लगा कर इसके टूटे हर टुकड़े को जोड़ते है और हैरान करने वाली बात यह है कि ऐसा करने से टुटा हुआ शिव लिंग कुछ दिनों में ही ऐसे जुड़ जाता है मानो कुछ हुआ ही न हो |
बिजली क्यों गिरती है और यहाँ के लोग इसे उत्सव क्यों मनाते है
बिजली महादेव मंदिर (Bijli Mahadev Temple) में गिरने वाली आसमानी बिजली के पीछे एक पौराणिक कथा है, जो यहाँ के स्थानीय निवासी कई वर्षों से सुनाते आ रहे हैं. उनके कथन अनुसार प्राचीन काल में इस क्षेत्र के पास कुलांत नामक एक दैत्य रहा करता था.
एक दिन उस दैत्य ने विशालकाय अजगर का रूप धारण किया और नागणधार से होता हुआ मंडी के घोग्घधार आ पहुँचा. फिर वहाँ से लाहौल स्पीति होता हुआ मथाण गाँव आ गया. वहाँ वह व्यास नदी के मध्य कुंडली मारकर बैठ गया. उसका उद्देश्य व्यास नदी का प्रवाह रोककर उस स्थान को जलमग्न करना था, ताकि वहाँ वास करने वाले सभी जीव-जंतुओं की डूबकर मृत्यु हो जाये.
जब यह बात भगवान शिव (Lord Shiva) को ज्ञात हुई, तो वे कुलांत को रोकने पहुँचे. कुलांत जैसे विशालकाय अजगर रुपी दैत्य पर काबू पाना आसान नहीं था. भगवान शिव ने पहले उसे विश्वास में लिया. फिर उसके कान में कहा कि उसकी पूंछ में आग लग गई है. यह सुनकर कुलांत तुरंत पीछे पलटा और भगवान शिव ने अपनी त्रिशूल से उसके सिर पर वार कर दिया.
त्रिशूल के प्रहार से कुलांत दैत्य मारा गया और उसका विशाल शरीर उसी क्षण पर्वत में परिवर्तित हो गया. कहा जाता है कि कुल्लू घाटी में बिजली महादेव से लेकर रोहतांग दर्रा और मंडी से लेकर घोग्घधार घाटी कुलांत दैत्य के शरीर से ही बनी है. कुलांत नाम से ही घाटी का नाम पहले ‘कुलूत’, फिर ‘कुल्लू घाटी’ (Kullu Valley) पड़ा.
कुलांत मर चुका था. किंतु घाटी के लोगों का डर समाप्त नहीं हुआ था, क्योंकि कुलांत अब भी वहाँ पर्वत के रूप में काबिज़ था और कभी-भी घाटी को तहस-नहस कर सकता था. इसलिए भोले शंकर ने स्वयं उसके मस्तक पर विराजमान होने का निश्चय किया और उसके मस्तक यानि पर्वत की चोटी पर स्थापित हो गए. साथ ही इंद्र देवता को आदेश दिया कि प्रति 12 वर्ष में उस स्थान वज्रपात करें. तब से प्रति 12 वर्ष में अनवरत उस स्थान पर बिजली गिरने का क्रम बना हुआ है. जन-धन की रक्षा के लिए शिव जी यह वज्रपात अपने ऊपर ले लेते हैं. इसलिए वज्रपात शिवलिंग पर ही होता है.
कुलांत नाम से ही घाटी का नाम पहले ‘कुलूत’, फिर ‘कुल्लू घाटी’ (Kullu Valley) पड़ा.बिजली गिरने के कारण इस मंदिर का नाम “बिजली महादेव मदिर” पड़ गया है. यह मंदिर कुलांत दैत्य से घाटी के लोगों की रक्षा का प्रतीक भी है.
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